Can Ayurveda Help in Treating Bleeding Piles?
खूनी बवासीर – जब व्यक्ति प्रकृति के विरुद्ध जा कर आहार विहार करता है तो उस समय पेट से सम्बंधित बीमारियाँ पैदा होती है जैसे कब्ज, अमल्पित ( acidity ) ,आध्मान (flatulence), मुख में कसैला पन आना शरीर में अधिकतर बीमारियों का कारण पेट से जुडी समस्याओं से है खाना पचाने का काम यकृत ( liver ) द्वारा किया जाता है यदि लिवर में कोई समस्या पैदा होत्ती है तो शरीर में कोलेस्ट्रॉल , अजीर्ण (indigestion), आमवात (rheumatic arthritis) जैसी बीमारियाँ होने लगती है एवं इसके अंतर्गत बवासीर जैसी बीमारी भी पैदा होती है जिसे आज के समय में piles के नाम से जानते है यह भी एक गुदगत व्याधि है जिसके हमारे शरीर पर दुष्परिणाम दिखाई देते है यह या तो बिना रक्त के होती है या रक्त के साथ अतः ध्यान रहे की यह बीमारी अगर जल्दी से ठीक नहीं होती तो अन्य बीमारियों को भी पैदा करती है जैसे भगंदर ( fistula ). इसके इलावा कभी कभी परिकरतिका (fissure) जैसी बीमारी में भी रक्त मल के साथ आता है इस लिए दोनों बीमारियों को ठीक तरह से जान कर ही उसका इलाज करे आइए इस बीमारी को और विस्तार से जानते है
कारण
- कब्ज का निरंतर बने रहना
- मल त्याग करते समय अधिक जोर लगाने से
- अधिक समय तक शौच में बैठे रहने से
- मोटापा
- गर्भावस्था
- गुदा सेक्स
- अधिक वजन उठाने से
- खाना खाने के बाद घुड़सवारी करना एवं कोई भी व्यायाम करना
- अधिक विरुद्ध आहार करने से जैसे अधिक तीखा खाने से, जंक फ़ूड लेने से
उपरोक्त सभी कारण गुदा में रक्त के संचरण में रूकावट डालते है जिस से कि रक्त वाहिकाओं में दबाव पड़ जाने से उनका आकार बढ़ने लगता है एवं मांस रूप में गुदा से बाहर आने लगता है इसके साथ साथ गुदा की मांसपेशियों में खिचाव भी आ जाता है और बवासीर रोग पैदा हो जाता है
लक्षण
- मल त्याग करते हुए दर्द का एहसास होना
- गुदा से मल त्याग करते हुए रक्त का बाहर आना
- गुदा से गाढ़ा द्रव्य बाहर आता है
- मल में रक्त का साथ साथ आना
- गुदा में खुजली का रुक रुक कर होना
स्टेजेस ऑफ़ पाइल्स
बवासीर की १ से ४ ग्रेड में वर्णन किया गया है
- पहली – अंदरूनी बवासीर में गुदा की बाहरी परत पर हलकी सी सूजन व् दर्द मालूम होता है
- दूसरी – इस स्टेज में शोथ बढ़ जाता है और मल त्याग करते हुए जोर लगाने पर खून के साथ मानसगत रूप में मस्से भी बाहर आ जाते है किन्तु बाद में अपने आप वापिस अंदर की तरफ चले जाते है
- तीसरी – इस ग्रेड में शौच करते हुए मस्सो क साथ साथ रक्त भी आता है एवं दर्द भी अधिक होता है उंगली के द्वारा मस्सो को अंदर की तरफ किया जाता है वह अपने आप वापिस अंदर की तरफ नहीं होते
- चौथी– इस ग्रेड में दर्द और बाद जाता है मल को त्यागते हुए खून के साथ साथ मस्से और बहार की तरफ आ जाते है लेकिन इसके बाद हाथ की ऊँगली से भी अंदर करने पर अंदर की तरफ नहीं जाते
उपदृव (Complication)
- अत्यधिक खून बाहर आता है
- गुदा अंदर से बाहर की तरफ आने लगती है
- उत्तक नष्ट होने लगती है , जिसकी वजह से अल्सर बनने लगते है
- रक्त की सप्लाई में अवरुद्धता आने पर थोड़े समय के बाद गैंग्रीन बनने लगता है
- गुदा के द्वार के पास शोथ उत्पन्न हो जाता है
चिकित्सा
- इस तरह के रोग में सर्वप्रथम कब्ज को दूर करना चाहिए तभी ये समस्या जड़ से जा सकती है कब्ज ही इसका मुख्य कारण है अतः जिन कारणो से कब्ज पैदा होती है जंक फ़ूड एवं पचने में भारी पदार्थो का कम सेवन करना , रात को समय पर सो जाना चाहिए ताकि दिन का खाना खाया हुआ जल्दी से पच जाये
- कुछ एकल द्रव्य जो पेट को साफ करने एवं अर्श रोग को ठीक करने में अपना योगदान देते है जैसे
- निशोथ , कुटकी , स्नुही , सनाय, कालमेघ , हरीतकी .बिभीतक , आंवला , शुंठी आदि ऐसी एकल औषधियाँ है जो विरेचन( purgative drugs ) कहलाती है इसके इलावा Planet Ayurveda में इस बीमारी को ठीक करने के लिए पर्याप्त औषधियाँ मौजूद है
1. संजीवनी वटी
यह औषधि अर्श रोग को ठीक करने के लिए दी जाती है इसमें काफी एकल औषधियों को मिक्स किया जाता है जैसे विडंग , शुंठी, पीपली , हरड़, बहेड़ा , आँवला आदि
मात्रा: २ -२ गोली पानी के साथ दिन में दो बार खाना खाने के बाद
2. वरा चूर्ण
इस चूर्ण का प्रयोग पेट में से ज़हरीले तत्वों को निकालने एवं यकृत को बल प्रदान करने में किया जाता है इसमें हरड़ , बहेड़ा , आँवला इन तीनो औषधियो को मिक्स करके डाला जाता है
मात्रा: १/२ से १ चम्मच पानी के साथ दिन बार खाना खाने के बाद
3. पाइल्स ऑफ कैप्सूल
यह चूर्ण रक्त एवं बिना रक्त वाली बवासीर में कार्य करता है इसमें हल्दी , त्रिकटु ( शुंठी मरीच पीपली ) सज्जी क्षार , नागकेसर , छोटी हरड़ आदि औषधियों से बनाया गया है
मात्रा: २ -२ गोली पानी के साथ दिन में दो बार खाना खाने के बाद
4. कांचनार गुग्गुल
इस दवा का प्रयोग मांस की बनी हुई गांठो में किया जाता है इसलिए इसे अर्श ( piles ) रोग में देते है
मात्रा: २ -२ गोली पानी के साथ दिन में दो बार खाना खाने के बाद
5. निर्गुन्डी आयल
इस तेल का प्रयोग बाहरी प्रयोग के लिए करते है इसे रात को रुई में भिगोकर मस्सो पर रखते है जिस से की वो ठीक हो जाते है
प्रयोग करने की विधि: उचित मात्रा में तेल मस्से पर लगाएं
इस तरह से इस रोग को ठीक करना चाहिए. बिना कब्ज को ठीक किये अर्श को ठीक करना बहुत मुश्किल होता है इसलिए ध्यान रहे की पेट में कभी कब्ज न बने और हरित पदार्थो का सेवन अधिक करने की कोशिश करे, क्योंकि यह शरीर में जल्दी पच जाते है
6. ड्रिफ्ट ऑइंटमेंट
इस मलहम में लज्जालु (मिमोसा पुडिका), निर्गुंडी (विटेक्स नेगुंडो), भृंगराज (एक्लिप्टा अल्बा) और कपूर का तेल (सिनामोमम कैम्फोरा) आदि आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों का मिश्रण किया गया हैं जो बवासीर में लाभकारी परिणाम देती हैं। यह बवासीर से जुड़े त्वचा रोगों को हटाने में मददगार साबित होती है।
प्रयोग करने की विधि: वैद्य के परामर्शनुसार | इस तरह से इस रोग को ठीक करना चाहिए . बिना कब्ज को ठीक किये अर्श को ठीक करना बहुत मुश्किल होता है इसलिए ध्यान रहे की पेट में कभी कब्ज न बने और हरित पदार्थो का सेवन अधिक
करने की कोशिश करे , क्योंकि यह शरीर में जल्दी पच जाते है
कुछ अन्य प्रयोग जिन्हे ध्यान में रखे
- पहला प्रयोगः जीरे का लेप अर्श पर करने से एवं 2 से 5 ग्राम जीरा उतने ही घी-शक्कर के साथ खाने से एवं गर्म आहार का सेवन बंद करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
- दूसरा प्रयोग: बड़ के दूध के सेवन से रक्तप्रदर व खूनी बवासीर का रक्तस्राव बन्द होता है।
- तीसरा प्रयोग: अनार के छिलके का चूर्ण नागकेशर के साथ मिलाकर देने से अर्श (बवासीर) का रक्तस्राव बंद होता है
- चौथा प्रयोग: दो सूखे अंजीर शाम को पानी में भिगो दे। सवेरे के भिगोए दो अंजीर शाम चार-पांच बजे खाएं। एक घंटा आगे पीछे कुछ न लें। आठ दस दिन के सेवन से बादी और खूनी हर प्रकार की बवासीर ठीक हो जाती है।
- पाँचवा प्रयोग: बवासीर को जड़ से दूर करने के लिए और पुन: न होने के लिए छाछ सर्वोत्तम है। दोपहर के भोजन के बाद छाछ में डेढ़ ग्राम (एक चौथाई चम्मच ) पीसी हुई अजवायन और एक ग्राम सेंधा नमक मिलाकर पीने से बवासीर में लाभ होता है और नष्ट हुए बवासीर के मस्से पुन: उत्प्न्न नही होते
- छठा प्रयोग: नारियल की जटा से करे खुनी बवासीर का एक दिन में इलाज। नारियल की जटा लीजिए। उसे पूरी तरह जला दीजिए। जलकर भस्म बन जाएगी। इस भस्म को शीशी में भर कर ऱख लीजिए। डेढ़ कप छाछ या दही के साथ नारियल की जटा से बनी भस्म तीन ग्राम खाली पेट दिन में तीन बार सिर्फ एक ही दिन लेनी है। ध्यान रहे दही या छाछ ताजी हो खट्टी न हो। कैसी और कितनी ही पुरानी पाइल्स की बीमारी क्यों न हो, एक दिन में ही ठीक हो जाती है।
यह नुस्खा किसी भी प्रकार के रक्तस्राव को रोकने में कारगर है। महिलाओं के मासिक धर्म में अधिक रक्तस्राव या श्वेत प्रदर की बीमारी में भी कारगर है। हैजा, वमन या हिचकी रोग में यह भस्म एक घूँट पानी के साथ लेनी चाहिए।
दवा लेने के एक घंटा पहले और एक घंटा बाद तक कुछ न खाएं अगर रोग ज्यादा जीर्ण हो और एक दिन दवा लेने से लाभ न हो तो दो या तीन दिन लेकर देखिए।
बवासीर में क्या खाये
- करेले का रस, लस्सी, पानी।
- दलिया, दही चावल, मूंग दाल की खिचड़ी, देशी घी।
- खाना खाने के बाद अमरुद खाना भी फायदेमंद है।
- फलों में केला, कच्चा नारियल, आंवला, अंजीर, अनार, पपीता खाये।
- सब्जियों में पालक, गाजर, चुकंदर, टमाटर, तुरई, जिमीकंद, मूली खाये।
बवासीर में परहेज क्या करे
- तेज मिर्च मसालेदार चटपटे खाने से परहेज करे।
- मांस मछली, उडद की दाल, बासी खाना, खटाई ना खाएं।
- डिब्बा बंद भोजन, आलू, बैंगन।
- शराब, तम्बाकू।
- जादा चाय और कॉफ़ी के सेवन से भी बचे।
बवासीर से बचने के उपाय
- खाने पीने की बुरी आदतों से परहेज करे जैसे धूम्रपान और शराब।
- खाने में मसालेदार और तेज मिर्च वाली चीजें न खाये।
- पेट से जुडी बीमारियों से बचे।
- कब्ज़ की समस्या बवासीर का प्रमुख कारण है इसलिए शरीर में कब्ज़ न होने दे।
- गर्मियों के मौसम में दोपहर को पानी की टंकी का पानी गर्म हो जाता है, ऐसे पानी से गुदा को धोने से बचें